मध्य प्रदेश का इतिहास
मध्य प्रदेश के इतिहास में आज सभी परीक्षाओं में आए हुए महत्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे जो मध्य प्रदेश की सभी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
मध्य प्रदेश का सामान्य परिचय
यहां पर ऐतिहासिक स्थलों के उत्खनन व शोधों के उपरांत प्राप्त हुए उपकरणों की बनावट के आधार पर यहां के इतिहास का आरंभ पाषाण युग से माना जाता है।
- म.प्र. में प्रागैतिहासिक काल में लिपि लेखन का विकास नहीं हुआ था।
- म.प्र. में प्रागैतिहासिक काल की जानकारी का सर्वप्रमुख स्त्रोत पुरातात्विक साक्ष्य हैं।
- भारतीय प्रागैतिहासिक काल के इतिहास को उद्घाटित करने का श्रेय डॉ. प्राइमरोज नामक एक अंग्रेज को जाता है।
- इन्होंने 1842 ई. में कर्नाटक के रायचूर जिले में लिंगुसुगुर स्थान पर प्रागैतिहासिक औजारों की खोज की।
- इस काल के प्रमुख स्थल भीमबैटिका, आदमगढ, महादेव पिपरिया, नर्मदा घाटी, सोन नदी घाटी, सोनार नदी घाटी आदि।
पुरापाषाण काल (2.5 लाख से 10,000 ई. पूर्व तक)
यह वह समय था, जब मनुष्यों ने पत्थरों का प्रयोग करना सीखा।इस युग का महत्वपूर्ण कार्य था, मानव द्वारा आग जलाना सीखना, परंतु उस पर नियंत्रण बाद के कालों में हुआ।मध्य प्रदेश में पुरापाषाण कालीन स्थल हैं- नर्मदा घाटी, सोन घाटी, बेतवा घाटी आदि।इस युग के प्रमुख औजार हैं- चॉपर, हस्तकुठार, फ्लैक तथा ब्लेड जो म.प्र. के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ये औजार क्वार्टजाइट जैसे नर्म पत्थरों से बने होते थे।म.प्र. के आदमगढ, जावरा, रायसेन एवं पंचमढी पुरापाषाणकाल से संबंधित है।होशंगाबाद तथा नरसिंहपुर के बीच स्थित नर्मदा घाटी में पुरापाषाण कालीन जीवाश्म की प्राप्ति हुई है।डॉ. अरुण सोनकिया ने 1982 ई. में सीहोर जिले के हथनौरा नामक स्थल के उत्खनन के दौरान मानव खोपडी (नर्मदा मानव) (ये खोपडी होमोड्रेक्टस नर्मदेसिस की है) के साक्ष्य मिले हैं, जो अब तक के भारत में प्राप्त मानव अवशेषों में सबसे प्राचीन है।हथनौरा के पास प्राचीनतम विलुप्त हाथी के दोनों दांत तथा ऊपरी जबडे का जीवाश्म भी खोजा।ग्वालियर के निकट बी.बी. लाल ने उत्खनन करके अनेक पुरापाषाणकालीन उपकरणों की खोज की।जबलपुर के निकट भेडाघाट से भी अनेक पुरापाषाणकालीन औजार मिले हैं।निसार अहमद द्वारा सोन घाटी में किए गए उत्खनन से कई स्थानों पर पुरापाषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।डॉ. एच.डी. सांकलिया तथा सुपेरकर को महादेव पिपरिया, होशंगाबाद से 860 औजार प्राप्त हुए हैं।नरसिंहपुर के निकट भुतरा नामक स्थान से पाषाणकालीन स्थल प्राप्त हुए हैं, जो म.प्र. के सबसे प्राचीन उपकरण माने जाते हैं। नरसिंहपुर के करेली में शक्कर नदी के किनारे प्राचीन शैलचित्र मिले।सबसे ज्यादा स्तनधारी के साक्ष्य भेडाघाट से मिले हैं, उत्खनन कर्ता – निसार अहमद।रायसेन जिले के भीमबेटका एवं सागर के निकट पहाड़ियों में पुरापाषाण कालीन शैल चित्र पाए गए हैं, इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय विष्णु वाकणकर को जाता है। भीमबेटका से प्राप्त 500 गुफा चित्रों में से 5 पुरापाषाण काल के तथा शेष मध्यपाषाण काल के हैं।
मध्य प्रदेश के महत्पूर्ण तथ्य
भीमबेटका की गुफाए
- भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया।
- इन रॉक शेल्टर को 2003 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया था।
- भीमबेटका, मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है।
- भीमबेटका की खोज विष्णु वाकणकर ने सन् 1957-58 में की थी। 1962 में यहां पर मानव शैलाश्रयों की खोज हुई।
- भीमबैठिका में आदिमानव के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- भीमबेटका से प्राप्त ‘नीले पाषाण खण्ड’ उच्च पुरा पाषाण कालीन ‘गुहा चित्रकारी’ को प्रकट करते हैं।
मध्यपाषाण काल (10,000 ई. पूर्व से 5,500 ई. पूर्व तक)
- इस काल में प्रयुक्त होने वाले पत्थरों के उपकरण अत्यंत छोटे होते थे, इसलिये इन्हें माइक्रोलिथ कहा गया।
- 1867 में ए.सी.एल. कार्लाइल मध्य पाषाणकालीन स्थलों की सर्वप्रथम पहचान विंध्य क्षेत्र में की।
- आदमगढ़ (जिला होशंगाबाद) नर्मदा तट पर स्थित प्रागैतिहासिक मानव की क्रीडास्थली रहा है। यहां से मानव के पशुपालक होने के साथ-साथ मानव शव के साथ कुत्ते के दफनाये जाने का प्रमाण भी मिलता है। आर.बी. जोशी ने लघुपाषाण उपकरण प्राप्त किए हैं।
आदमगढ
- खोजकर्ता – आर.बी. जोशी तथा एन.ई. खरे 1961 में।
- ज्यादा धार वाले औजार
- चट्टनों पर चित्रकारी
- गुफाओं में आवास
- नर्मदा के दक्षिणी तट पर
- भीमबेटका से 40 किमी. दूर।
- धार जिले में स्थित प्रसिद्ध बाघ गुफाओं के पास मध्य पाषाणकाल से लेकर नवपाषाण काल तक के उपकर की प्राप्ति हुई है।
- खेड़ीनामा (होशंगाबाद) से भी मध्यपाषाणकाल के साक्ष्य मिले हैं।
- होशंगाबाद के पंचमढी में मध्यपाषाण काल के 2 शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं:- 1. जम्मूद्वीप 2. डोरथी दवीप
- बी बी मिश्रा ने भीमबेटका में इस युग के ब्लेड अवयवों के विकास को अनुरेखित किया है।
उत्तर पाषाण काल (सूक्ष्म पाषाण काल)
- छोटे-छोटे औजार
- क्वार्टज के पत्थर
- स्थल – शहडोल, होशंगाबाद, उज्जैन।
नवपाषाण काल (5,500 ई. पूर्व से 3,000 ई. पूर्व तक)
- इस काल में स्थायी निवास तथा कृषि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। मध्य प्रदेश में ऐरण, आदमगढ, दमोह, सागर, जबलपुर, भोपाल आदि से नवपाषाणकालीन स्थल मिले हैं।
- भोपाल में श्यामला पहाड़ी के शैलाश्रयों से अनेक खांचेदार क्रोड तथा लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- भोपाल के बैरागढ़ से नवपाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- जबलपुर में नर्मदा नदी के तिलवाडा घाट तथा लमेटाघाट से नवपाषाणकालीन बस्तियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- इसके अतिरिक्त सोन नदी घाटी, बनास तथा मोहन नदी घाटी के मध्य अनेक नवपाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- इस काल में शिकार करना बंद हो गया।
- कृषि पर जोर दिया गया।
- मृदभांड, वस्त्र निर्माण के साक्ष्य।
- प्रमुख औजार – सेल्ट, कुल्हाडी, घन, वसूला, रचक, ओक इत्यादि।
- स्थल – एरण, गडीकोयला (सागर), कुंडम (जबलपुर), होशंगाबाद, छतरपुर, हटा+संग्रामपुर घाटी (दमोह), भोपाल में नेवरी गुफा, श्यामला हिल्स, बैरागढ़, मामा भांजा शैलाश्रय आदि।
विशेष – दमोह जिले के दक्षिण-पूर्व में स्थित सिंग्रामपुर घाटी से वर्ष 1866 ई. नवपाषाणकालीन अवशेषों की प्राप्ति हुई है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख शैलाश्रय तथा शैलचित्र
- लिखी छाज शैलाश्रय – भीमबैटका की ही तरह गुफाओं और छज्जे नुमा चट्टानों के नीचे बने शैल चित्रों की लंबी श्रृंखला मुरैना जिले के पहाड़गढ़ के कारस में मिलती है।
- रानी माची शैलाश्रय – सोन के कगार पर ‘रानी माची शैलाश्रय हैं’, जिसमें गेरू से पशुओं के चित्र बने हैं। पशुओं का चित्रण चौकोर रेखाओं से आड़ी-तिरछी रेखाओं से भरा गया है। यह चितरंगी, सिंगरौली में है।
- लिखी दंत शैलचित्र – अशोकनगर जिले की ऐतिहासिक व पर्यटन नगरी चंदेरी के 21 ऐतिहासिक स्मारक राज्य संरक्षित घोषित किए गए, जिसमें लिखी दंत शैलचित्र भी शामिल है।
ताम्रपाषाण काल
- मध्य प्रदेश में ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष मालवा, नवदाटोली, कायथा, ऐरण, बेसनगर आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं।
- इस काल में मनुष्य पत्थर तथा तांबे के औजार का प्रयोग करने लगा था, इस कारण इसे ताम्रपाषाण काल कहा जाने लगा।
- इन स्थानों पर उत्खनन से मृदभांड, धातु निर्मित बर्तन एवं उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- जबलपुर से कुल्हाडी, बालाघाट के डोंगरिया से तांबे के उपकरण तथा चांदी के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
- भीमबेटका से ताम्रपाषाणकालीन शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
- डांगवाला (उज्जैन) में ताम्रपाषाणकालीन साक्ष्य मिले हैं।
डांगवाला (उज्जैन)
- यहां से ताम्रपाषाणकालीन साक्ष्य मिले हैं।
- यहां से 2000 ई.पू. से परमार वंश तक के साक्ष्य की जानकारी मिली है।
- गढपालिका स्तूप
- मृदभांड (ज्यामिती व जंतुओं की आकृति)
- दो बार आग लगने के साक्ष्य मिले हैं।
- यहां की साम्रगियों में पक्की मिट्टी की वृषभ मूर्ति तथा तश्तरियां, हिरण, सांभर, बैल आदि की हड्डियां व अनाज के साक्ष्य मिले हैं।
- ब्राह्मी लिपि में लिखा सिक्का ।
- चावल, गेहूं, मूंग की दाल के साक्ष्य।
- उत्खनन 1979 ई. में।
म.प्र. में इस काल की प्रमुख संस्कृतियां
मालवा संस्कृति
- म.प्र. में सर्वप्रथम नवदाटोली व महेश्वर के उत्खनन से ताम्रपाषाणिक सभ्यता सामने आई।
- प्रमुख स्थलः- कायथा (उज्जैन), ऐरण (सागर) तथा नवदाटोली (खरगौन)।
- मालवा संस्कृति अपनी उत्कृष्ट मृदभांड के लिये जानी जाती है।
- नवदाटोली से कृषि के साक्ष्य मिले हैं।
- खेडीनामा ताम्रपाषाणकालीन स्थल होशंगाबाद में है।
कायथा संस्कृति
- प्रमुख स्थलः- कायथा (उज्जैन) एवं ऐरण (सागर)
- कायथा के मृदभांडों पर प्राक-हडप्पा, हडप्पा और हडप्पोत्तर संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है।
कायथा (उज्जैन)
- यह स्थल कालीसिंध नदी के किनारे स्थित है।
- इसकी खोज 1964 ई. में श्री विष्णु वाकणकर ने की थी।
- विष्णु वाकणकर ने कायथा खोज को कायथा सभ्यता नाम दिया।
- इसे म.प्र. की प्रथम ताम्रपाषाण बस्ती माना जाता है।
- कायथा के टीले पर ताम्रपाषाण युग से लेकर गुहाकाल तक के स्तर मिले हैं।
- यहां से मानको के साक्ष्य मिले हैं।
- रेडियो कार्बन डेटिंग से इसका समय 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के बीच का है।
- चारों तरफ दीवारों से घिरा है।
ऐरण (सागर)
- यह स्थल बीना नदी के किनारे स्थित है।
- उत्खननकर्ता – कृष्णदत वाजपेयी। (1960-61)
- एरण गुप्त काल में महत्वपूर्ण नगर था।
- गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के एक शिलालेख में एरण को ‘एरकिण’ कहा गया है। इस अभिलेख को कनिंघम ने खोजा था।
- इस स्थल पर चार सांस्कृतिक स्तर मिले हैं। प्रथम ताम्रपाषाण कालीन, द्वितीय लौहयुगीन तथा अन्य दो परवर्ती हैं। यहाँ से पंचमार्क सिक्कों के भारी भण्डार मिले हैं।
- एरण से एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई. का है। इसे ‘भानुगुप्त का अभिलेख’ कहते हैं। इस अभिलेख को एरण का सती अभिलेख भी कहा जाता है।
- यहां से एक मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में सिक्का मिला है।
नवदाटोली (खरगौन)
- मध्य प्रदेश में नर्मदा की घाटी में नवदाटोली की खुदाई 1957-1958 में एच.डी. सांकलिया (हंसमुख धीरजलाल सांकलिया) तथा महाराज सयाजीराव के निर्देशन में की गयी थी।
- हाथीदांत से बने आभूषण के साक्ष्य मिले हैं।
- यहाँ से प्राप्त मृद्भाण्डों को मालवा मृदद्भाण्ड भी कहते हैं।
- घोड़े के कोई भी अवशेष इस स्थान से नहीं मिले है।
- नवदाटोली से कृषि के साक्ष्य मिले हैं।
- शंख की मूर्तियां मिली है।
- हाथीदांत से बनी एक मातृ देवी की मूर्ति।
- शील जिस पर ब्राह्मी लिपि में वराह अवतार लिखा है।
- रोमन सभ्यता के कुछ सिक्के मिले हैं।
अन्य स्थल
- नागदा – उत्खननकर्ता – अमृत पांडेय व एन.आर. मुखर्जी । स्थान उज्जैन जिले में चंबल नदी के किनारे। बेसनगर प्राचीन नाम भेलसा / बेसनगर। स्थान विदिशा में बेतवा नदी के तट पर।
- खोजकर्ता डी. आर. भंडारकर लेकिन प्रथम बार 1910 ई. में उत्खनन एच.एच. लेक ने कराया। इस स्थल से नवपाषाणकाल,
- ताम्रपाषाणकाल से लेकर मौर्योतर काल तक के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। आवरा- उत्खननकर्ता एच. व्ही. त्रिवेदी।
- स्थिति मंदसौर, विशेष यहां से ताम्रपाषाणिक सामग्री व रोम सभ्यता से संपर्क के साक्ष्य मिलते हैं, चंबल डैम बनने के बाद इस स्थल का विनाश हो गया, मकान की नींव के साक्ष्य, हड़ड़ियों के उपकरण ।
- अन्य स्थल खलघाट (धार), इंदरगढ़ (मंदसौर), कसरावद (खरगौन), आजाद नगर (इंदौर), डॉगरिया (बालाघाट)
लौहयुगीन संस्कृति (1,000 ई.पू.)
मध्य प्रदेश में मुरैना, भिंड और ग्वालियर क्षेत्र में लौहयुगीन संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।चित्रित धूसर-मृदभांड लौह युग की पहचान है।यह लगभग 1000 ई.पू. की हैं।म.प्र. की अगरिया जनजाति आदिम काल से ही देशी तकनीक दवारा लोह तैयार करती थी।
मध्य प्रदेश में आयैऐतिहासिक काल
इस काल के लिखित साक्ष्य उपलब्ध है, परंतु लिपि अभी तक पढी नहीं जा सकी है।अतः इस काल की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत पुरातात्विक स्त्रोत हैं। उदाहरण- सैंधव सभ्यता, वैदिक संस्कृति (ऋग्वैदिक काल तथा उत्तर वैदिक काल)
नोट- सैंधव सभ्यता तथा ऋग्वैदिक काल के साक्ष्य म.प्र. से नहीं मिले हैं।
उत्तरवैदिक काल
समय काल: 1000 – 600 ई.पू.
ऋग्वैदिक काल में आर्य संस्कृति उत्तर तक सीमित थी और उत्तर वैदिक काल में ही उसने विंध्याचल को पार कर म.प्र. में कदम रखा।
वैदिक काल
नदियों की जानकारी से हमें पता चलता है कि आर्यों का विस्तार पूर्वी क्षेत्र तथा यमुना से उत्तर तक था।उत्तर वैदिक ग्रंथों में म.प्र. के बारे में बहुत सी जानकारी दी गई हैं:-
- ऐतरेय ब्राम्हण में जिस निषाद जाति का उल्लेख है, वह म.प्र. के जंगल में निवास करती थी।
- कौषीतकि ब्राम्हण में अप्रत्यक्ष रूप से विंध्य पर्वत का उल्लेख है।
- शतपथ ब्राह्मण में रेवान्तर (रेवा के उस पार के क्षेत्र की जानकारी)।
- महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में नर्मदा घाटी में यादवों का एक झुण्ड बस गया और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन प्रारंभ हुआ।
वैदिक युग
पुराणों में राजा मनु के वंशजों ने यहां पर बहुत से वंशजों की शुरूआत की हैः-
इला वंश
सभवतः यह म.प्र. का पहला वश था।तात्पर्य – पृथ्वी पहला राजा – सोम या चंद्र, पुरूरवा
- पुरूरवा के राज्य में चर्मावती, वेत्रवती, शुक्तिमति की जानकारी मिलती है।
- इला वंश -यादव वंश – हर्यक वंश
- अनुश्रुतियों के अनुसार मनुष्यों की परंपरा में अंतिम मनु वैवस्वत हुए, जिनके दस पुत्र थे। इनके करूष नामक पुत्र से कारूष वंश चला तथा कारूष देश की स्थापना हुई, जो वर्तमान बघेलखंड में स्थित था।
- मनु की पुत्री इला का विवाह सोम से हुआ था। सोम या चंद्र ने ऐल साम्राज्य की स्थापना की। सोम के पुत्र
- पुरुरवा ने बुंदेलखंड क्षेत्र में ऐल साम्राज्य (चंद्रवंश) का विस्तार किया।
- पुरुरवा के वंशज ययाति ने अपने पुत्र यदु को म.प्र. में चंबल, बेतवा और शुक्तिमति (केन), नदियों के आसपास का क्षेत्र दिया।
- यदु ने यादव वंश की स्थापना की तथा बुंदेलखंड क्षेत्र पर शासन किया।
- यदु के पुत्र क्रोष्ट्ट के वंशज यादव कहलाए तथा दूसरे पुत्र सहस्त्रजित के वंशज हैहय कहलाए।
इक्ष्वाकु वंश (सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश) (दण्डकारण्य क्षेत्र)
सोन नदी व सरयु नदी के बीच स्थित। संस्थापक मनु पुत्र इक्ष्वाकु।मंधाता इक्ष्वाकु वंश का राजा था। पुराणों के अनुसार इनका विवाह ऐल वंश की राजकुमारी बिंदुमति से हुआ था।मंधाता के पुत्र पुरुकुत्स तथा मुचुकुन्द
पौराणिक कथाओं के अनुसार मुचकुंद ने नर्मदा नदी के किनारे अपने पूर्वज मंधाता के नाम पर ‘मंधाता नगरी’ की स्थापना की जो वर्तमान ‘खंडवा जिले’ का क्षेत्र है। (कुछ स्त्रोतों से मंधाता नगरी मंधाता ने बसायी।) राजा पुरुकुत्स का विवाह नर्मदा से हुआ, तथा पुरुकुत्स ने रेवा नदी का नाम परिवर्तित कर नर्मदा कर दिया। नोट- इक्ष्वाकु के पुत्र दण्डक का राज्य म.प्र. के दक्षिण क्षेत्र पर था, जो बाद में दण्डकारण्य कहलाया। रामजी वनवास के समय इसी दण्डकारण्य क्षेत्र (छतीसगढ़) में रहे थे।
हैहय वंश (यादव वंश की शाखा)
संस्थापकः- यदु पुत्र ‘हैहय’
माहिष्मत – इन्होंने महष्मति (नर्मदा नदी के किनारे) को बसाया, जो वर्तमान में महेश्वर है। माहिष्मत ने इक्ष्वाकु शासक मुचकुन्द को पराजित किया था।
कीर्तवीर्य अर्जुन इस वंश का प्रतापी राजा था, इसने लंका नरेश रावण को परास्त किया। अन्य नाम- सहस्त्रार्जुन पशुराम से हारा था।
इनकी शाखाएं तुंडीकर (दमोह), त्रिपुरी (जबलपुर), दशार्ण (विदिशा), अनूप (निमाड) ग्वालियर व दतिया कुंती जनपद की सीमाएं थीं।
इस वंश के शासक अवंती ने उज्जैनी का नाम अपने नाम पर अवंती रखा।
महाकाव्य काल
पुराणों में वर्णन है कि सतपुडा व विंध्य प्रदेश के वनों में कभी निषाद जाति के लोग निवास करते थे।इस काल में हैहय (यादव) वंश के शासक महिष्मत ने महिष्मती (वर्तमान-महेश्वर) की स्थापना की।इस काल में नर्मदा का नाम रेवा, चम्बल का नाम चर्मावती व केन का नाम शुक्तिमति मिलता है। परशुराम राजा जमदग्नि के पुत्र थे, जमदग्नि के नाम पर जानापाव (मह) शहर का नाम पड़ा है।
रामायण काल
रामायण काल का संबंध त्रेता युग से है। इस काल में म.प्र. में पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
- इस काल में तमसा नदी के किनारे वाल्मीकि के आश्रम का उल्लेख मिलता है।
- चित्रकूट से भी इस काल के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं। यहां पर रामघाट व भरत मिलाप मंदिर के साक्ष्य हैं।
- राम के भाई शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती ने दशार्ण (वर्तमान विदिशा) पर शासन किया था, जिसकी राजधानी कुशावती थी।
- कालिदास द्वारा रचित महाकाव्य रघुवंशम में भगवान राम के पुत्र कुश ने दक्षिणी कोसल (छत्तीसगढ) तथा शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती ने दशार्ण (विदिशा) पर शासन किया।
नोट- म.प्र. में रामवन गमन पथ अमरकटक से चित्रकूट तक बनाया जा रहा है।
महाभारत काल
महाभारत काल का संबंध द्वापर युग से है। म.प्र. में इस काल के पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
- पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय म.प्र. के वनों में बिताया।
- महाभारत काल में दन्तवक्र नाम का दैत्य बुंदेलखण्ड के दतिया के आसपास रहता था, इसलिए इसका नाम दतिया पड़ा। श्री कृष्ण ने इसको पराजित किया। इसके पश्चात् वे गोपाकक्ष गए, जहां पर गोपालगिरि पहाडियां देखने को मिलेगी, जो कि ग्वालियर है।
- पांडवों का साथ देने वाले राजा काशी, वत्स, दशार्ण, येदि तथा मत्स्य
- कौरवों का साथ देने वाले राजा महिष्मति के नील, अवन्ति के बिन्द, अंधक, भोज, विदर्भ तथा निषाद के राजा।
पुरातात्विक साक्ष्यों से जानकारी मिलती है कि उत्तर वैदिक काल के बाद एवं महाजनपद काल से पहले मध्य प्रदेश के प्रमुख जनपद निम्न थे:-
[…] मध्य प्रदेश का इतिहास […]