राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का प्रथम नेता, नवजागरण का अग्रदूत तथा भारत में सुधार आंदोलन का मुख्य प्रवर्तक माना जाता है।राजा राममोहन राय ने फारसी में एक पुस्तक तुहफात-अल-मुवाहिदीन (एकेश्वर वादियों को उपहार) लिखी, जिसमें उन्होनें बहुदेववाद का विरोध किया। इन्होने मूर्ति पूजा, जात्ति प्रथा तथा धार्मिक आडंबरो का विरोध किया। मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राजा राममोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि दी थी।
- 1820 ई. में इन्होने ‘प्रीसेप्ट्स ऑफ जीजस नामक पुस्तक की रचना की जिसमें इन्हानें न्यू टेस्टामेट के नैतिक एवं दार्शनिक संदेशो की प्रशंसा की।
- 1815 ई. में राजाराममोहन राय ने द्वारिकानाथ ठाकुर के साथ मिलकर आत्मीया सभा का गठन (मिरातुल अखबार)
- किया। इसका उद्देश्य एकेश्वरवार का प्रचार-प्रसार करना था।
- 1817 ई. में कलकत्ता में स्थापित होने वाले हिंदू कॉलेज (डेविड हेयर के सहयोग से) की स्थापना से भी ये जुड़े हुए थे।
- इन्होने कलकत्ता यूनिटेरियन सोसाइटी स्थापित की।
- 1825 ई. में इन्होनें वेदांत कॉलेज की स्थापना करवाई।
- इन्होनें 1828 ई. में ब्रह्मसभा नामक एक संस्था की स्थापना की।
इन्होनें सती प्रथा के खिलाफ आदोलन की शुरूआत की तथा इन्ही के प्रयासों की बदोलत 1829 ई. में विलियम बैटिंक ने सती प्रथा को प्रतिबंधित करने के लिये कानून का निर्माण किया। 27 सितंबर 1833 ई. को इनकी मृत्यु (ब्रिस्टल, ब्रिटेन) के पश्चात ब्रह्म समाज का कार्यभार महर्षि द्वारिकानाथ टैगोर के कंधो पर आ गया। द्वारिकानाथ टैगोरे के पश्चात देवेन्द्रनाथ टैगोर ने इस संस्था को पुनर्जीवन दिया। ये 1843 ई. को ब्रह्म समाज से जुड़ें। इससे पूर्व देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1839 ई. में तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना की थी। इसी तत्त्वबोधिनी सभा से निकलने वाली तत्त्वबोधिनी पत्रिका ने भारत में बांग्ला भाषा के सुव्यवस्थित अध्ययन को बढ़ावा दिया। 1843 ई. से देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किया तथा ब्रह्म समाज ने विधवा पुनर्विवाह, बहुविवाह के उन्मूलन, नारी शिक्षा, रैयतों की दशा में सुधार के लिये आदोलन चलाया।आगे चलकर 1865 ई. में ब्रह्म समाज में विभाजन हो गया जिसके फलस्वरूप यह आदि ब्रह्म समाज एवं भारतवर्षीय ब्रह्म समाज में विभाजित हो गया।
स्क्षा अकादमी 1878 ई. में ब्रह्म समाज में दूसरा विभाजन हो गया तथा साधारण ब्रह्म समाज की नेतृत्व में हुई। देभाजन हो गया तथ्यां साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना आनंद मोहन बोस के देवेन्द्रनाथ टैगोर से जुड़े समुह आदि ब्रह्म समाज तथा केशवचंद्र सेन वाले गुट भारतीय ब्रह्म समाज कहलाए। ब्रह्म समाज में दूसरें विभाजन का कारण केशवचन्द्र सेन द्वारा ‘ब्रह्म विवाह अधिनियम का उलंघन करना था।