उपनिषद क्या हैं

उपनिषद क्या है इसके बारे में जानकारी हमें उपनिषद शब्द का विभेद करके प्राप्त होती है उपनिषद शब्द ‘उप’ और ‘निष’ धातु से बना है। जिसमें उप का अर्थ है समीप और निष का अर्थ है बैठना अर्थात् इसमें छात्र गुरु के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करता था ये वेदों के अंतिम भाग हैं अतः इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।एसर्वप्रथम मोक्ष शब्द का उल्लेख उपनिषद में ही किया गया।
उपनिषदों को संख्या 108 से 200 तक है (मूलतः 108 है) लेकिन आदि गुरु शंकराचार्य ने केवल 10 को ही प्रामाणिक व प्राचीन माना है
प्रमुख उपनिषदों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
1. ईशोपनिषद – यह उपनिषद निस्वार्थ व निष्काम भाव से कर्म करने पर बल देता है।
2. केन उपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्म को सर्व-शक्तिमान बताया है।
3. कठ उपनिषद– इसमें बताया गया है कि आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है। इस उपनिषद में नचिकेता और यमराज के बीच प्रश्न-उत्तर द्वारा मृत्यु के बाद जीवन के ज्ञान का वर्णन है।
4. प्रश्नोपनिषद– इसमें प्राणशक्ति को संसार का आधार बताया गया है। सूर्य ही समस्त जगत को प्राण शक्ति देता है।
5. मुण्डक उपनिषद– इस उपनिषद में यह बताया गया है कि मनुष्य गुरु के बिना दिशा भटक जाता है। परंतु गुरु स्वयं भी ब्रह्मनिष्ठ होना। भारतीय संस्कृति का प्रतीक ‘सत्यमेव जयते’ इसी से लिया गया है।
6. माण्डुक्य उपनिषद– इसमें ब्रहम के साकार और निराकार दोनों रूपों का वर्णन किया गया है। आकार की दृष्टि से यह सबसे छोटा उपनिषद् है।
7. तैत्तिरीय उपनिषद– इस उपनिषद में अन्न के महत्व को प्रदर्शित करते हुए कहा गया है कि अन्न जीवन का आधार है।
8. ऐतरेय उपनिषद– इस उपनिषद में आत्मा के महत्व को प्रदर्शित किया गया है।
9. छान्दोग्य उपनिषद – यह सबसे प्राचीन उपनिषद माना गया है। इसमें ही सर्वप्रथम देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख मिलता है। इसमें प्रथम तीन आश्रमों का वर्णन मिलता है। उद्दालक आरुणि व उनके पुत्र श्वेतकेतु के बीच ब्रह्म और आत्मा की अभिन्नता के विषय में हुए संवाद का वर्णन इसी उपनिषद में मिलता है। सत्यकाम जाबाल की कथा जो अनब्याही माँ होने के कलंक को चुनौती देती है, इसी में वर्णित है।
10. बृहदारण्यक उपनिषद – यह उपनिषद अन्य सभी उपनिषदों में सबसे अधिक विशाल है। ‘असतो मा सद्गमय’ – ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ वाक्य इसी में मिलता है।
11. श्वेताश्वर उपनिषद– ‘श्वेताश्वर उपनिषद’ का भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। इसका वास्तविक अर्थ “सफेद घोड़ा” है। इसमें ब्रह्म के लिए ‘हंस’ इस प्रयोग किया गया है। इसमें योग साधना व गुरु भक्ति के विषय में भी वर्णन है।
12. कौषीतकी उपनिषद– इसमें कहा गया है कि ब्रह्म की शक्ति ही सभी इंद्रियों का स्रोत है।