गोंड जनजाति
सामान्य जानकारी
गोंड जनजाति म.प्र. की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। (कुल जनजाति का 33.25%(50.93 लाख) गोंड जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड (कुछ विद्वानों के अनुसार मूल- द्रविड़ियन परिवार) प्रजाति समूह से संबंधित है।
गोंड शब्द का उदय तेलुगु भाषा के शब्द कॉड से हुआ है जिसका अर्थ होता है पहाड़। अर्थात् यह जनजाति विंध्य तथा सतपुड़ा पर्वतों पर निवास करती है। गोंड स्वयं को ‘कोईतोर’ कहते हैं।
सर्वाधिक गोंड जनजाति वाला म.प्र. का जिला छिंदवाड़ा (6.2 लाख)
मध्यप्रदेश में गोंड जनजाति बैतुल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, बालाघाट, शहडोल, मंडला, सागर, दमोह, डिंडौरी इत्यादि।इस जनजाति का विस्तार विंध्यांचल तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों में मिलता है
गोंडों में गोत्र को ‘कुर’ कहा जाता है। इनमें परस्पर विवाह नहीं होता है।
उपजातियां
काम के अनुसार उपजातियां
- अगरिया- लोहे का काम करने वाले।
- प्रधान – पुजारी का कार्य करने वाले।
- ओझा तांत्रिक क्रिया करने वाले।
- सोलाहस – बढईगिरी करने वाले।
- कोईलाभूतिस-नाचने गाने का काम करने वाले।
निवास स्थान के आधार पर
- राज गोंड- ये लोग भू स्वामी होते हैं।
- धुर गोंड – यह गोंडो का साधारण वर्ग है।
- माड़िया गोंड अत्यंत पिछड़े हैं।
- खातुलवार गॉड
सामाजिक विशेषताएं
गोंड जनजाति पितृसत्ताम्क (पुरुष प्रधान समाज) होती है। परिवार में बुजुर्ग व्यक्ति मुखिया होता है तथा बुजुर्ग औरत का दूसरा स्थान होता है। गोंड परिवारों में अतिथियों के लिए साफ-सुथरा कमरा होता है। पंचायत का मुखिया भोई / मुकद्दम / माझी / देशमुख / गोटिया होते हैं।
मुकद्दम (मुकद्दम का पद- वंशानुगत) की सहायता के लिए कोटवार की नियुक्ति की जाती है। और देवान- मुकदमे से संबंधित गुप्त सुचनाएं मुखिया को उपलब्ध करवाता है। लिखई- पंचायत का वृद्ध सदस्य।
पण्डा / गुनिया / बरूआ गांव में तांत्रिक क्रिया करने वाला व्यक्ति होता है गोंड जनजाति के घर घास-फूस व मिट्टी के बने होते हैं। इन का मोहल्ला ‘टोला’ कहलाता है। इन का पसंदीदा खाना-पेज (मोटे अनाज से बना) और इन का मूल भोजन – कोदो कुटकी कहलाता है। महुआ को देव अन्न कहते हैं।
गोंड पुरूष लंगोटी तथा सिर पर पगड़ी पहनते हैं। महिलाएं आभूषणों और गोदना की शौकीन रहती है।
आर्थिक विशेषताएं
प्रधान व्यवसाय – कृषि (हल प्रतीक), झुम कृषि- बारी / दहिया
शिकार तथा पशुपालन।
जंगली वस्तुओं को बेचना मुख्य वस्तुयें- आम, आंवला, जामुन, महुआ, मछली, चावल, इत्यादि।
प्रमुख फसलें – सियारी (धान, कोदो-कुटकी) तथा उन्हारी (गेहु, चना, मसूर)ज्यादातर गोंड हरवारी खेती (बैल न होने के कारण)
धार्मिक विशेषताएं
यह टोटम को महत्वपूर्ण मानते हैं। गोंड जनजाति अपनी उत्पत्ति लिंगादेव से मानते हैं तथा इनका अराध्य देव मानते हुए पुजा करते हैं, जिसे कोयापुनेम कहा जाता है। इनके पुरोहित- वैगा है। बड़ा देव (प्रमुख देवता) इनके गोंड सर्वशक्तिमान मानते हैं। भगवान शंकर का रूप। सवारी- सफेद घोड़ा।
मुख्य देवता – दूल्हा देव, शादी विवाह सूत्र में बाँधने वाला देव मानते है।
ठाकुर देवता-ग्राम देवता और नारायण देव घर की दहलीज पर निवास करते है। पंडा पंडिन-रोग दोष का निवारण करने वाला देव होता है।
खैरमाई देवी- ग्राम की रक्षा करने वाली देवी (स्थान- महुआ वृक्ष)
राता माई, शारदा माई, खेरमाता गोंड जनजाति के पुजारी को ‘देवरी’ कहा जाता है।
जन्म तथा मृत्यु संस्कार
गोंडों के अनुसार बड़ा देव ही आदमी को जन्म देता है तथा उसे उठा लेता है। शिशु के जन्म के 6 दिन बाद बच्चे को ध्रुवतारा दिखाया जाता है और शिशु के जन्म के 12वें दिन शिशु का नामकरण होता है। गोंडों में मृतक संस्कार की दो विधियां दफनाना (बीमारी से मृत्यु पर) तथा जलाना (स्वाभाविक मृत्यु पर) प्रचलित है। गोंडों में मृत्यु के 10 दिन बाद दशमानी या दशगात्र प्रथा होती है।
पाटो प्रथा- दशमानी में विधवा खी को पंचों के सामने चुड़ियां पहनाना।
मृत्यु संस्कार
मोरदान- दशमानी में मिला मृत्यु दान ।
दौंधी- मोरदान लेने वाला व्यक्ति ।
अंतिम संस्कार में ‘खहल पाता’ नामक मृत्युगान गाया जाता है।
विवाह
समान गोत्र में विवाह पूर्णतः वर्जित है। प्रमुख विवाहों में से दूध लौटावा – मामा और बुआ के बच्चों से विवाह,हरण विवाह,विधवा विवाह है।
लमसेना विवाह – लड़का वधू मूल्य (दूध बंध) नहीं चुका पाने की स्थिति में शादी से पूर्व होने वाले सास-ससुर की सेवा करता है। वह व्यक्ति लामानई कहलाता है।
सेवा विवाह – गोंड जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है गोंड प्रजाति अपनी भाषा में इस को लमझना कहते हैं।
पोलीधर विवाह – अपहरण विवाह का एक रूप। (इसे पायसोतुर विवाह भी कहते हैं।)
चढ़ विवाह – सर्वाधिक प्रचलित है, इसमें लडके की बारात लडकी के यहां जाती है।
पठीनी विवाह – इसमें लड़की की बारात लड़के के यहां जाती है। (वर्तमान में यह प्रथा बंद है)
बलात् विवाह- इसमें लड़का जबरन लड़की को अपने घर में ले आता है या हाट-बाजार में हल्दी छींट देता है। (घर वाले शादी के लिए नहीं मान रहे तब यह विवाह होता है)
प्रीति विवाह – इसमें लड़की के पिता को वधू मूल्य अनिवार्य रूप से दिया जाता है।
परिवीक्षा विवाह – घोटुल परंपरा पर आधारित।
विवाह में मंडप गाड़ने की प्रथा को मांगर माटी कहा जाता है।
चित्रकला
गॉड चित्रकला प्रकृति, पशु और पेड़ों से संबंधित होती है। मुख्य रंग लाल, हरा, नीला और पीला भाग्य, शांति और संबद्धता का प्रतीक
गोंड चित्रकला मण्डला, डिंडौरी में सर्वाधिक प्रचलित है, इसलिए डिंडौरी की गोंड चित्रकला को जी.आई. टैग मिला है। डिंडौरी के पाटनगढ गांव को चित्रकारों का गांव कहा जाता है। जनगढ़ सिंह श्याम का जन्म डिंडौरी में हुआ। जनगढ कलाम आंदोलन के प्रणेता।
डिगना कला-गोंड जनजाति में प्रसिद्ध। इसमें गोबर की लिपाई पर गेरू तथा चूने से ज्यामितिय आक्रतियां बनाई जाती है। दुर्गाबाई व्योम डिगना कला से संबंधित है।
गॉड चित्रकला के प्रमुख चित्रकारः- जनगढ़ सिंह श्याम, दुर्गाबाई व्योम, आनंद सिंह श्याम व उनकी पत्नी कलावती आदि।
दुर्गा बाई व्योम का जन्म मंडला में हुआ। यह गोंड जनजाति की डिगना कला से संबंधित है। इन्हें 2022 में पद्मश्री से नवाजा गया।
नोहडोरा कला- गोंड जनजाति द्वारा दीवार पर मिट्टी से बनी कला को नोहडोरा कहा जाता है। नोहडोरा, दीवार चित्रकला का औपचारिक आरंभ बिंदु है। महिलाओं द्वारा घर में मिट्टी की उभरी रेखाओं से भित्ति चित्र बनाया जाता है।
नृत्य एवं गायन
करमा नृत्य – गोंड व बैगा जनजाति में प्रचलित, स्त्री प्रधान नृत्य। वाद्य यंत्र- मांदर। यह नृत्य विश्व का प्रथम नृत्य है, जिसे 2016 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है।
सैला नृत्य- पुरूष प्रधान नृत्य, जिसमें पुरूष हाथों में डंडा लेकर करता है, (शैल) पहाड़ों पर यह नृत्य किया जाता है।
सजनी नृत्य- स्त्री प्रधान नृत्य, समधिन समधी को पकड़कर नाचती है।
भड़ीनी नृत्य-विवाह नृत्य है। इसमें महिलाएं मण्डप के नीचे खड़े होकर बारातियों को मीठे गीत के माध्यम से गालियां देती है।
कहरवा नृत्य- कहरवा ताल पर खुशी का नृत्य है।
बिरहा नृत्य- यह नृत्य विरह से संबंधित है। विवाह में होता है।
सुआ नृत्य- पूर्वी म.प्र. में धान की फसल पकने पर लड़कियां नृत्य करती है।
दीवानी नृत्य- अहीरों के द्वारा किया गया नृत्य।
स्वांग और गम्मत- विवाह के अवसर पर गाया जाता है।
चैत्र उत्सव नृत्य, रीना आदि।
पण्डवानी:- गोंड जनजाति की परधान शाखा से संबंधित है। इसमें महाभारत की कथाएं होती हैं, जिसमें अर्जुन की अपेक्षा भीम को अधिक महत्व दिया जाता है। प्रमुख कलाकार – तीजनबाई
घोटुल पाटाः- यह गान मुड़िया जनजाति के लोगों द्वारा मृत्यु पर किया जाता है। यह निमाड़ के मसाण्या से साम्यता रखता है।
ददरिया गान:- यह एक लोक कविता है। यह पदों के रूप में दो-दो पंक्तियों में गाया जाता है। यह प्रश्न उत्तर के रूप में गाया जाता है। यह गान गोंड व बैगा जनजाति के महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाता है।
करमा गीत – करमा नृत्य के दौरान किया जाता है।
नोहडोरा गीत – विवाह में वर जब तैयार होता है, तब गाये जाते हैं।
फाग गीत- फाल्गुन में गाया जाता है।
सेताम- इसमें प्रीतम अपनी प्रीतमा पर प्रेम स्वरूप व्यंग्य करता है।
रामायणी- इसमें राम जी के बजाए लक्ष्मण जी को महत्व दिया जाता है।
पर्व / उत्सव / त्यौहार
मड़ई मेला- गोंड व इसकी उपजातियों में लगता है। (मण्डला तथा डिंडौरी) यह छतीसगढ़ में बहुत प्रसिद्ध है। यह मेला जनवरी से अप्रैल माह तक आयोजन होता है।
इस के पहले दिन देवी के सामने बकरे की बलि तथा पवित्र वृक्ष के नीचे नृत्य व संगीत होता है। इसमें आदिवासी लोग अपने देवता अंगा देव की सवारी निकालते हैं। इसमें एबालतोई नृत्य होता है, जो दिन व रात्रि के समय होता है।
लारूकाज-नारायण देव के सम्मान में तथा सुअर की बलि दी जाती है। यह पर्व सुअर के विवाह का प्रतीक है।
नवाखनी- धान की फसल में जब बाली आना शुरू होती है, तब मनाते हैं। यह पितरों की पुजा का त्यौहार है।
बिदरी – शुद्ध रूप- बदरी या बादल। इसमें बादल तथा धरती माता की पूजा की जाती है। इसमें ठाकुर देव की पुजा होती है।
बकबन्धी- यह गुरू पूर्णिमा को मनाते हैं। बैगा पलाश के पौधों की जड़ों से रेशे निकालकर हल्दी से रंगते हैं, तथा मंत्र बोलते हुए प्रत्येक गॉड युवक को बांधते हैं।
मेघनाथ-फाल्गुन के पहले पक्ष में यह पर्व गोंड आदिवासी मनाते हैं। इसकी कोई निर्धारित तिथि नहीं है।मेघनाद गोंडों के सर्वोच्च देवता हैं, चार खंबों पर एक तख्त रखा जाता है जिसमें एक छेद कर पुनः एक खंभा लगाया जाता है और इस खंबे पर एक बल्ली आड़ी लगाई जाती है। यह बल्ली गोलाई में घूमती है। इस घूमती बल्ली पर आदिवासी रोमांचक करतब दिखाते हैं। नीचे बैठे लोग मंत्रोच्चारण या अन्य विधि से पूजा कर वातावरण बनाकर अनुष्ठान करते हैं। कुछ जिलों में इसे खंडेरा या खट्टा नाम से भी पुकारते हैं।
हरडिली- बैलों को हलों से ढील देने के कारण इसका नाम हरदिली पड़ा। इस दिन बैलों की पूजा करते हैं। इसमें खरीफ फसल की बुवाई समाप्त होने पर मनाते हैं।
छेरता – पौष माह की पूर्णिमा को छोटे बच्चों द्वारा मनाया जाता है।
भाषा / बोली
गोंडी तथा डोरली इनकी भाषाएं हैं।
प्रमुख जिलेः- छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, होशंगाबाद, इत्यादि।
गोंडी बोली का सर्वाधिक प्रभाव महाकौशल में दिखाई देता है।
म.प्र. सरकार द्वारा गोंडी भाषा को 2019 में प्राथमिक शिक्षा में शामिल किया गया है।
साहित्य
वैरियर एल्विन ने 1947 में ‘द मुड़िया एंड देअर घोटुल’ नामक पुस्तक प्रकाशित की थी।
प्रमुख तथ्य
- गोंड जनजाति का सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन प्रो. श्यामाचरण दुबे ने किया।
- मुडियाओं के समान गोंडों में भी ‘घोटुल प्रथा’ पायी जाती है।
- बेरियर एल्विन ने ‘the muria and their ghotul’ नामक पुस्तक प्रकाशित की थी।
- गोंडी भाषा को 2019 में म.प्र. पाठ्यपुस्तक निगम में शामिल किया गया है।
- मुडिया, गोडों की अत्यंत पिछड़ी उपजाति है।
- अबुझमाड़िया, यह गोंडों की उपजाति है, जिसका अर्थ- अज्ञान जंगली।
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