1842 ई. में बुन्देला विद्रोह समस्त बुन्देलखण्ड में हुआ। उसके प्रमुख कारण अंग्रेजों की भू-राजस्व व्यवस्था एवं उसे वसूल करने की प्रणाली थी। जिससे समस्त राजा अत्यंत कुपित एवं असंतुष्ट थे। बुन्देलखण्ड के अधिकांश शासक अंग्रेजों से संधि कर चुके थे। परन्तु वे अंग्रेजों की नीतियों से असंतुष्ट थे अतः राजा पारीछत ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष हेतु समस्त राजाओं को प्रेरित करने का विचार किया। इसी विचार को कार्यरूप देने हेतु अगले साल अर्थात् 1836 ई. में चरखारी नरेश रतनसिंह के संरक्षण में सूपा नामक स्थान पर बुढ़वा मंगल के आयोजन की योजना निर्मित की गई। इस आयोजन में बुन्देलखण्ड के लगभग 42 छोटी-बड़ी रियासतों के शासक, सामंतों एवं जागीरदार को बुलाया गया।
* 1842 ई. में बुन्देलखण्ड की रियासतों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ सशक्त प्रतिरोध किया गया। जिसमें जैतपुर नरेश पारीछत प्रमुख सूत्रधार बने।बुन्देला विद्रोह के सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए सर्वप्रथम पारीछत ने नाराहट के जागीरदार मधुकरशाह एवं गणेशजू तथा नरसिंहपुर के पास हीरापुर के लोदी शासक हिरदेशाह को सिमरिया के किलेदार बखत कनोजिया के हाथों संदेश भिजवाकर सागर क्षेत्र में विद्रोह प्रारंभ कराया।
* राजा पारीछत ने जबलपुर क्षेत्र में पहलवान सिंह के द्वारा संदेश भिजवाकर वहाँ के शासकों को अंग्रेजों से संघर्ष हेतु प्रेरित किया।
* बुन्देला विद्रोह का आरंभ 8 अप्रैल 1842 ई. को नाराहट में मधुकरशाह द्वारा किया गया। उन्होंने पारीछत के निर्देश अनुसार सागर एवं नरसिंहपुर के अंग्रेज इलाकों पर कब्जा कर लिया। उत्तर-पूर्व में रोजा पारीछत एवं दक्षिण पूर्व में राजा हिरदेशाह ने भी इसी नीति का अनुपालन किया। अंग्रेजों और राजा पारीछत के बीच बिलगाँव का युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों की पराजय हुई। अंग्रेजों व राजा पारीछत के मध्य 8 जून 1842 ई. को पुनः पनवाड़ी का युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों की पुनः हार हुई।
* 24 नवम्बर, 1842 ई. को सागर-नर्मदा क्षेत्र के कमिश्नर चार्ल्स फ्रेजर ने समस्त विद्रोही पर इनाम की घोषणा की। परन्तु सफलता न मिलने पर फूट डालो शासन करो की नीति का अनुपालन करते हुए सर्वप्रथम जैतपुर के दीवान और गोलंदाज को अपने पक्ष में किया। तत्पश्चात् चरखारी रियासत के राजा रतनसिंह को अपनी ओर मिला लिया। कमिश्नर फ्रेजर ने बखतवली को गढ़ाकोटा का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया एवं 22 दिसम्बर, 1842 ई. को हिरदेशाह को सम्पूर्ण परिवार सहित पकड़ लिया।
* मधुकरशाह को पकड़ने के लिए राजा मर्दनसिंह को लालच दिया गया और 24 जनवरी, 1844 ई. को हेमिल्टन द्वारा मर्दन सिंह को पकड़ लिया गया।
* कुसुमदेई के कम्मोद सिंह, पहलवान सिंह एवं विलहेरी के जवाहर सिंह ने राजा पारीछत को अंग्रेजों के समक्ष समर्पण हेतु मना लिया एवं 14 अक्टूबर, 1844 ई. को राजा पारीछत ने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। 1842 ई. के बुन्देला विद्रोह ने भारत में दबी हुई क्रांति की ज्वाला को प्रज्जवलित किया जो 1857 की क्रांति के रूप में विस्फोटक रूप में बाहर आई। इसीलिए 1857 की क्रांति का सर्वाधिक प्रसार बुन्देलखण्ड क्षेत्र में हुआ था।
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