मध्यप्रदेश की शिल्पकला
मध्यप्रदेश की शिल्पकला का प्रसिद्ध शिल्पकलाओं में आता है जैसे – बांस शिल्प,पता शिल्प,मिट्टी शिल्प,टेराकोटा शिल्प,कधी शिल्प,गुडिया शिल्प,छिपा शिल्प,काष्ठ शिल्प आदि।
बांस शिल्प -मध्यप्रदेश की शिल्पकला में बांस शिल्पकला सजावट और उपयोग की बहुत सी वस्तुएँ बाँस से बनाई जाती है। इस शिल्पकला के प्रमुख केन्द्रः झाबुआ, बेतुल है। मंडला की जनजातियाँ बांस शिल्प के लिये जानी जाती है।बालाघाट इसका प्रमुख केन्द्र है। बैतूल जिले के तूरी जनजाति बांस से टोकरी बनाती है।
पत्ता शिल्प – मध्य प्रदेश की विभिन्न जनजातियों में पत्तों के खिलौने चटाई आसन बनाने की परंपरा प्रचलित है। पत्तियों का उपयोग सामान्यतः झाड़ बनाने में होता है। मोगिया जाति के द्वारा झाडु बनाने का कार्य किया जाता है। इसके अलावा सजावटी खिलोने, चटाई, आसन, आदि। क्षेत्र-झाबुआ, अलीराजपुर
मिट्टी शिल्प – मिट्टी शिल्प एक प्राचीन कला है। मनुष्य द्वारा सबसे पहले मिट्टी के ही बर्तन बनाए गए थे। म.प्र. में झाबुआ, मण्डला और बैतूल ये जिले मिड्डी शिल्प के केन्द्र है। क्षेत्रवार के रूप में धार-झाबुआ का मिट्टी शिल्प ,रीवा शहडोल का मिट्टी शिल्प। बैतूल मण्डला का मिट्टी शिल्प बघेलखण्ड में दीपक जैसी आकृति के बर्तन बनाए जाते हैं, जिन्हें कवेलू कहा जाता है।
टेराकोटा शिल्प – मिट्टी शिल्प और टेराकोटा शिल्प एक प्राचीन कला है टेराकोटा शिल्प में गीली मिट्टी की पकाकर वस्तुएं बनाई जाती हैं टेराकोटा से बनी मुख्य वस्तुएँ मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, खिलौने, आदि झाबुआ, मंडला और बैतुल में वे कला प्रसिद्ध है। प्रमुख रूप से मंडला जिले की जनजातियों द्वारा यह शिल्प बनाया जाता है। टेराकोटा शिल्प में धार्मिक मान्यताओं व परंपराओं वाली प्रतिमा बड़ा देव व फुलवारी देवी।
लकड़ी शिल्प – लकड़ी से कई तरह की वस्तुएं जैसे घर, पहिया, मूर्ति, दरवाजे, इत्यादि बनाए, जाते है। इसके लिए सागौन, साल, कीकर, और बांस की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। श्योपुर, रीवा और मोरेना का लकड़ी शिल्प मध्यप्रदेश के साथ साथ बाहर भी प्रसिद्ध है। कोरकू के मृतक स्तंभ ‘मडों’ और ‘भीलों’ के कलात्मक ‘दिवाण्या’ लकड़ी शिल्प के नमूने है। विदिशा जिले के मुन्नालाल विश्वकर्मा ने ‘प्राकृतिक लकड़ी की मूर्तियों का संग्रहालय स्थापित किया है।
खराद कला – हाथ या मशीन से लकड़ी को छीलकर वांछित आकार देना एवं उस पर लाख मिश्रित रंग चढाने की कला, खराद कला कहलाती है। खराद शिल्प म.प्र. के मुरैना, श्योपुर, रीवा तथा सीहोर के बुधनी घाट की खराद कला विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
कंधी शिल्प – कंधियाँ आदिवासियों में एक विशेष महत्व रखती है। कई तरह से कंधियों की सजावट की जाती है जैसे नक्कासीदार, जड़े हुए, मीनाकारी, इत्यादि। मध्यप्रदेश में कंची शिल्प का श्रेय बंजारा जनजाति को जाता है। म.प्र. में कंघी शिल्प उज्जैन, रतलाम, नीमच तथा पश्चिम क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
धनुष बाण शिल्प -जनजातियों के मध्य धनुष बाण बनाने की परपरा है।वे बांस, मोरपंख, लकड़ी, लोहे, रस्सियों, आदि से बनाए जाते है। धनुष बाण भीलों का प्रतीक चिन्ह है।
कठपुतलिया – भारत में कठपुतली का खेल नाटक से भी पुराना है। म.प्र. के मालवा में प्रमुख रूप से कठपुतली का खेल होता है। कठपुतली के मुख्य किरदार अनारकली, बीरबल, अकबर, घुड़सवार, सांप और योगी होते है।कठपुतली नचाने का कार्य नट जाति के लोग करते हैं।
गुड़िया शिल्प – मध्यप्रदेश में, गुड़ियाँ रंगीन कपड़ो और कागज़ से बनाई जाती है। ग्वालियर की गुड़िया शिल्प अपनी सजावट के लिये प्रसिद्ध है।ग्वालियर गुड़िया कला का प्रमुख केन्द्र है। झाबुआ भील गुड़िया का केन्द्र है।गुड़िया शिल्प में ग्वालियर की बत्ती बाई का नाम विश्वप्रसिद्ध है।गुडिया शिल्प के लिए रमेश परमार तथा शांति परमार को पद्मश्री 2023 मिला है
छिपा शिल्प – इसमें कपड़ों के ऊपर हाथ से छापे बनाए जाते है। बहुत से जनजातियों के निशान और छापे बनाए जाते है। छिपा के पारंपरिक केंद्र उज्जैन और धार है। धार का बाघ गांव बाघ प्रिंट के लिए प्रसिद्ध है। उज्जैन के बाटिक प्रिंट को अभी हाल ही में GI TAG मिला है। नंदना ब्लॉक प्रिंटिंग नीमच जिले के तारापुर गांव में भील जनजाति के बीच लोकप्रिय है। उज्जैन का छीपा शिल्प ‘भेरूगढ़’ के नाम से विख विख्यात है। कुक्षी का छीपा शिल्प विश्व विख्यात है। श्री सुलेमान जी कुक्षी के छीपा शिल्प के श्रेष्ठ कलाकार हैं।
महेश्वरी साड़ी – माहेश्वरी साड़ियां देश के साथ साथ विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। ये अपनी डिज़ाइन और कलाकारी के लिए प्रसिद्ध है। महेश्वरी साड़िया पारंपरिक बुनकरों द्वारा कॉटन और सिल्क के धागों का उपयोग करके सुंदर और मजबूत बनाई जाती है। हुई माहेश्वरी साड़ी उपहार में दिया करती थी। माहेश्वरी साड़ी के उद्योग को शुरु करने का श्रेय होल्कर शासिका रानी अहिल्या बाई को दिया जाता है, वे अपने मेहमानों को अपने हाथ से बुनी महेश्वरी साड़ी को जी आई टैग 2012-13 में दिया गया है।
चंदेरी साड़ी – चन्देरी साड़िया कॉटन और सिल्क से बनी होती है और ये अपनी बूटी कार्य और साधारण डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है। इनका नाम चंदेरी नामक स्थान से पड़ा है जहाँ से इनकी शुरुआत हुई थी। चन्देरी साड़ी को 2005-06 में जी आई टैग मिला है।
भील शिल्प – भील जनजातियो की महिलाएं चटाई, पर्स, बैग और गले के हार बनाती है भील महिलाएं मनके के हार पहनने की शौकीन होती है जिन्हें वो स्वयं बनाती है। भील जनजाति की पुंजा दरियां प्रसिद्ध है। नीमच जिले की नंदना ब्लॉक प्रिंटिंग भील जनजाति के बीच बहुत लोकप्रिय है।
पत्थर शिल्प – रतलाम और मंदसौर पत्थर शिल्प के केन्द्र है जहाँ पारंपरिक वास्तुकार रहते हैं। लोक देवी देवताओं की मूर्तियां जनजातियों के लिए बनाए जाते है। भेड़ाघाट संगमरमर की मूर्तियों का केंद्र है। जबलपुर स्टॉन क्राफ्ट को अभी हाल ही में GI TAG मिला है।
लाख शिल्प – लाख को लाख के पेड़ से एकत्रित किया जाता है उसके बाद उससे चूड़ियाँ, खिलौने, डिब्बे और सजावटी पेड़ और जानवर बनाए जाते है। इंदौर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर और महेश्वर लाख शिल्प का पारंपरिक केन्द्र है। लाख का काम करने वाली जाति- लखारा प्रसिद्ध लाख शिल्पकार- राजेन्द्र लखार।
पेपीयर माचे – पेपर माचे एक शिल्प है जिसमें मैश किए हुए कागज और किसी प्रकार के पेस्ट का उपयोग करके कई तरह की वस्तुएं बनाई जाती हैं।पेपर माचे का नाम फ्रांसीसी शब्द “पैपियर मावे” से निकला है, जिसका अनुवाद “चबाया हुआ कागज’ है। यह पुरानी कला है, जो नागबंशी समुदाय के लोगों के द्वारा बनाई जाती है। इसके मुख्य केन्द्र उज्जैन, भोपाल, रतलाम और ग्वालियर है। पैपीयर माचे शिल्प-उज्जैन शहर में प्रचलित एक लोकप्रिय शिल्प है।
Leave a Reply