गोंड कालीन स्थापत्य कला
गोंड कालीन स्थापत्य कला प्रतिभा विशेष रूप से संग्रामशाह के शासनकाल में अधिक तेजी से उभर कर सामने आई। गोंड वंश के राजाओं ने राज्य विस्तार के साथ अनेक जन उपयोगी कार्य भी सम्पन्न कराए जिन में चिह्न यत्र-तत्र विद्यमान है। जिनके ऐतिहासिक गोंडकालीन स्मारकों को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है पहला दुर्ग (किला), दूसरा मठ तथा मंदिर तथा तीसरा तालाब, कुआँ, बावड़ी, अन्य स्मारक।
दुर्ग (किला)
गोंड कालीन स्थापत्य कला में दुर्ग अर्थात् किले का महत्त्व बहुत है। चाहे युद्ध की दृष्टि हो या सुरक्षा की दृष्टि से। गोंडकाल में इनका उपयोग शिकारगाह के लिये भी किया जाता रहा है। गोंडकाल में वास्तुकला के केंद्र तो 52 थे, क्योंकि “जिस-जिस स्थान पर किले हैं वो वास्तुकला के केंद्र है। इनमें प्रमुख गढ़ अर्थात् किले हैं गढ़ा, सिंगौरगढ़, चौरागढ़, रामनगर तथा मंडला।
गढ़ा (मदनमहल स्थित दुर्ग)
गढ़ा स्थित दुर्ग का निर्माण गोंडवंशीय शासक मदनशाह द्वारा 1116 शासक के नाम के आधार पर मदनमहल किया गया। ई. में कराया गया था जिसका नामकरण इसी शासक के नाम के आधार पर मदनमहल किया गया। यह किला दो अनगढ़ चट्टानों के ऊपर बिना किसी नींव के निर्मित कराया गया था। वास्तुकला की दृष्टि से यह एक साधारण भवन है। तीन खंड के बने हुये इस किले के नीचे के खंड में कोई कमरा नहीं है. केवल सीढ़ियाँ और पहरेदारों को बैठने के लिये संकरी तथा छोटी कोठरी है। मध्य में मुख्य खंड आता है, जो बहुत बड़ा नहीं है परंतु ये दोनों ओर से सामान्य कमरों से घिरा हुआ है। ऊपर की ओर खुली छत तथा एक छोटा-सा कमरा है। कमरे में आले की तरह बिना शलाकाओं की खिड़कियाँ किले के सामने कुछ दूरी पर हस्तिशाला व अश्वशाला है। इनके समीप बावलीनुमा स्तानागार है जो जमीन से 6-7 फुट नीचे है। इसमें नीचे जाने के लिये सीढ़ियाँ हैं, साथ ही दो कमरे भी बने हुए हैं।
सिंगौरगढ़ दुर्ग
किले के अंदर एक शिलालेख जड़ा हुआ है। शिलालेख में दो गुडिया बनी हुई है। गणेश प्रतिमा तथा अन्य दो प्रतिमाएँ अव्यवस्थित रूप से पड़ी हुई है।
विस्तृत किले में एक बड़ा सरोबर एक तट से प्रारंभ होकर पहाड़ी के शिखर तक अवस्थित है तथा शिखर के चौरस तल में भी अनेक भवन के भग्नावशेष विद्यमान है। किले की दीवारें तो कुछ नष्ट हो गई है। दरवाजों के कुछ भी अवशेष स्पष्ट नहीं हैं। इतमें अनगढ़ पत्थर, गारे का प्रयोग तथा ऊँचे दरवाजे उल्लेखनीय हैं। दरवाजे की चौखटें पत्थर की बनी हुई हैं। किले के भवनों को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला तराई के भवन तथा दूसरा शिखर के भवन। • किले में प्रवेश हेतु जाते समय तालाब के बाई ओर से जाना पड़ता है, जहाँ से तालाब की सीमा समाप्त होती है, वहाँ से बाई ओर किले में जाते के लिये प्रवेश द्वार है। तालाब कृत्रिम है तथा चारों ओर से बंधा प्रतीत होता, है। सौर से सीढ़ियाँ नहीं हैं. अपितु कुछ तालाब में चारों ओर से स्थानों पर उतरने के लिये सीढ़ियाँ हैं
चोरागढ़ दुर्ग
यह किला सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पर स्थित है। किले की भव्यता को देखकर प्रतीत होता है कि इसमें छोटे-बड़ेमिलाकर लगभग 100 भवन होंगे। लगभग 10 भूमिगत पानी की बावड़ियाँ, बड़े कुएँ तथा तालाब हैं जिनमें कुछ तो अच्छी हालात में है, परंतु कुछ के मात्र अवशेष ही दिखलाई देते हैं। किले के दक्षिण में एक पहाड़ी जो बुंदेला कोटा कहलाती है, बुन्देला आक्रमण का स्मारक है। पश्चिम की पहाड़ी में गोंड राजाओं के महलों के अवशेष हैं और पूर्व की ओर भोंसले सरकार द्वारा सेना के लिये निर्मित भवन के भग्नावशेष विद्यमान हैं।
रामनगर दुर्ग
गोंड राजा हृदयशाह द्वारा मध्ययुगीन ऐतिहासिक गांव रामनगर बसाया गया। रामनगर में हृदयशाह तथा अन्य गोंड राजाओं द्वारा निर्मित दुर्ग भग्नावशेष के रूप में विद्यमान है।प्रमुख किले तीन हैं- मोतीमहल, रानीमहल, रावभगत की कोठी आदि।
मोतीमहल
रामनगर स्थित यह किला मोतीमहल तथा राजामहल के नाम से जाना जाता है। आँगन के चारों ओर कमरे बने हुए हैं। सामने की ओर बरामदे के समान कम चौड़े तथा अधिक लम्बे कमर है। • महल के चारों कोने के किनारे में बने कमरे छोटे-छोटे तथा वर्गाकार हैं। महल के पश्चिम की ओर एक द्वार । जहां से गांव जाने के लिए रास्ता है।
बेगममहल
बंगममहल हृदयशाह ने अपनी उपपत्नी चिमनी बेगम के निवास हेतु (ई. सन् 1634-1678) में बनवाया था। इस किले में चारों कोनों पर वर्गाकार कमरे हैं, प्रत्येक कमरे में चार दरवाजे हैं जिनकी मात्र चौखटें शेष है. र पत्थर की बनी हुई हैं। ये चारों कमरे छोटे तथा दो मंजिल के हैं। प्रत्येक में छत नहीं अपितु ये गुम्बदनुमा डाटदार छाया है। मध्यर बड़ा कक्ष है, जो वर्गाकार है। इसमें चारों और तीन-तीन दरवाजे हैं। किले में एक बावली है जिसके ऊपर भी कक्ष बना हुआ है जो आयताकार है, जिसमें दो और तीन-तीन दरवाजे आमने-सामने बने हुए हैं। किले के चारों ओर दीवाल है। इस किले में मुगल वास्तुकला की झलक दृष्टिगोचर होती है।
अन्य मंदिर
राधाकृष्ण मंदिर, शिव मंदिर, पचमठा मंदिर (अधारताल), बैठकजी (देवताल), राजराजेश्वरी मंदिर (मंडला). (बिलहरी, सिहोरा), मंदिर बहोरीबन्द (सिहोरा), शिव मंदिर (कुआँगाँव, कटनी), विष्णु मंदिर रामनगर (मंडला)
पचमठा (भेड़ाघाट, जबलपुर), मढ़िया मठ (गोपालपुर), पचमठा मंदिर (गोपालपुर), लक्ष्मीनारायण मंदिर (गोपालपुर पशपुतिनाथ मंदिर (गोपालपुर), लम्हेटाघाट, तिलभण्डेश्वर मंदिर, हनुमान मंदिर, श्री कुम्भेश्वर मंतर (सूर्य मंदिर रामनगर (तिलवाराघाट)।
तालाब
संग्रामसागर
संग्रामसागर गोंड नरेश संग्रामशाह द्वारा निर्मित एक विशाल तालाब है संग्रामशाह ने इस तालाब का निर्माण सिंचाई के प्रयोजन के अलावा तांत्रिक उद्देश्यों के लिये भी कराया था। इसकी संरचना प्राचीन वास्तुशास्त्र के अनुरूप है. जिससे नगर की समृद्धि बढ़ती थी। तालाब तीनों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, इसी के एक ओर बाजनामठ मंदिर बना है। इस तालाब के बीच में एक ऐतिहासिक महल है जिसे ‘आमखास’ कहा जाता है।
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