मध्य प्रदेश में राजपूत कालीन साहित्य

मध्य प्रदेश में राजपूत कालीन साहित्य में राजाओं का शासन काल साहित्य की उन्नति के लिए विख्यात है। राजपूत राजा न केवल विद्वानों के आश्रयदाता थे, बल्कि कुछ राजपूत राजा स्वयं उच्चकोटि के विद्वान एवं अनेक ग्रंथों के रचनाकार थे। उदाहरणार्थ- मालवा के परमार शासक भोज ने विविध विषयों पर संस्कृत भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें प्रमुख हैं श्रृंगारप्रकाश, सरस्वतीकण्ठाभरण, समरांगणसूत्रधार, युक्तिकल्पतरु, शब्दानुशासन आदि। उसी प्रकार शाकम्भरी के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने संस्कृत भाषा में हरिकेली नामक नाटक, कर्नाटक के चालुक्य वंश की शासिका विजयभट्टारिका (विज्जिका) ने संस्कृत भाषा में कौमुदीमहोत्सव नामक नाटक, कल्याणी के चालुक्य शासक सोमेश्वर तृतीय ने संस्कृत भाषा में मानसोल्लास नामक शिल्पशास्त्र की रचना की थी।
राजपूत राजाओं के आश्रित विद्वानों ने भी संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी भाषा के अनेक ग्रंथों की रचना की थी। संस्कृत भाषा के ग्रंथों में राजशेखर कृत काव्यमीमांसा, बालरामायण, बालभारत, विद्धशालभंजिका, हेमचन्द्र कृत अभिधानचिन्तामणि, द्वाश्रय महाकाव्य (कुमारपालचरित), परिशिष्ट-पर्वन, श्रीहर्ष कृत नैषधचरित, जयदेव कृत गीतगोविन्द, विल्हण कृत विक्रमांकदेवचरित, सोमदेव कृत कथासरित्सागर, क्षेमेन्द्र कृत वृहत्कथामंजरी तथा कल्हण कृत राजतरंगिणी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। प्राकृत भाषा के ग्रंथों में राजशेखर कृत कर्पूरमंजरी, हेमचन्द्र कृत सिद्धहेमशब्दानुशासन आदि प्रमुख हैं। हिन्दी भाषा के ग्रंथों में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय के राजकवि चन्दबरदाई कृत पृथ्वीराजरासो प्रमुख है, जिसे हिन्दी भाषा का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
राजपूत काल में विविध विषयों पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई थी। इस काल में गाहड़वाल मंत्री लक्ष्मीधर ने धर्मशास्त्र पर कृत्यकल्पतरु, भट्टभुवनदेव ने वास्तुशास्त्र पर अपराजितपृच्छा तथा मानसार नामक विद्वान ने शिल्पशास्त्र पर स्वयं के नाम पर मानसार नामक ग्रंथ की रचना की थी। इसके अतिरिक्त इस काल में विधिशास्त्र पर विज्ञानेश्वर ने याज्ञवल्क्य स्मृति पर मिताक्षरा नामक टीका तथा बंगाल के जीमूतवाहन ने दायभाग की रचना की थी। इस काल में अनेक प्रसिद्ध दार्शनिकों, जैसे- शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, कुमारिलभट्ट आदि ने भी अनेक दार्शनिक ग्रंथों की रचना की थी।
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