भारतवर्ष के नामकरण
भारतवर्ष के नामकरण के बारे में इतिहास में बहुत सी जानकारी मिलती है।भारतवर्ष’ शब्द भा+रत वर्ष से मिलकर बना है। अर्थ है-ऐसा स्थान जो निरन्तर प्रकाशमय रहता है। पौराणिक ग्रन्थों में भरत नाम के तीन वीर राजाओं के नाम मिलते हैं। पुराणों में समस्त पृथ्वी को सात खण्डों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक भू-खण्ड के दोनों ओर कई समुद्र बताए गए हैं, इन सात द्वीपों के नाम निम्न हैं- जम्बू द्वीप, पुष्कर द्वीप, शक द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, प्लान द्वीप, क्रौंच द्वीप।
जम्बू द्वीप – प्रायः ग्रंथों में बृहत्तर भारत की धरती को इसी नाम से अभिहित किया गया है। मत्स्य पुराण के अनुसार वृहत्त भारत के 9 खण्ड थे, जो अब समुद्र में डूब चुके हैं- इंद्रदीप, कसेठ, ताम्रपर्णी, गमिष्टिमान, नागदीप, सौम्य, गंधर्व, वरुण, भरत। जम्बूद्वीप का अधिकांश भाग एशिया माना जाता है। जम्बूद्वीप पृथ्वी के केन्द्र में स्थित माना गया है।

‘स्वयंभू मनु’ से ‘भारत’
भारतवर्ष के नामकरण के आधार पर भारतीय धर्म दर्शन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रहमा के मानस पुत्र ‘स्वयंभू मनु’ ने सृष्टि व्यवस्था संभाली। उनके दो पुत्र थे-प्रियव्रत एवं उत्तानपाद। महाराजा प्रियव्रत के दस पुत्र थे। इनमें तीन बाल ब्रह्मचारी थे, अतः प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों में पृथ्वी को विभक्त कर दिया। इन सात पुत्रों में एक का नाम अग्नीघ्र था, जिसे जम्बूद्वीप का शासन सौंपा गया।
मध्य प्रदेश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी
महाराज अग्नीघ्र के सबसे बड़े पुत्र का नाम ‘नाभि’ था। नाभि को हिमवर्ष का भू-भाग प्राप्त हुआ। नाभि ने ही हिमवर्ष को अपने एक नाम अजनाभ से जोड़ा और इसे ‘अजनाभवर्ष कहा।

दुष्यन्त पुत्र भरत के नाम पर ‘भारत’
महाभारत के ‘आदि पर्वी में उल्लिखित एक कथा के अनुसार महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की पुत्री शकुन्तला का पुरुवर्षीय राजा दुष्यन्त के साथ गंधर्व विवाह हुआ था। इस पुत्र का नाम ‘भरत’ था और उनके नाम पर ही इस भू-खण्ड को भारत कहा गया। एतरेय ‘ब्राह्मण’ में दुष्यन्त पुत्र भरत ही भारत नामकरण का आधार है।
त्रेता युग में दशरथ के चार पुत्रों में सबसे बड़े ‘राम’ और दूसरे ‘भरत’ थे। कुछ लोग भरत के त्याग और भातृप्रेम को अनुपम एवं अनुकरणीय मानते हुये इसी भरत के नाम को ‘भारतवर्ष से जोड़कर देखते हैं।

भारत के नामकरण के अन्य कारण
भरतगण के कारण भी भारत का नाम पड़ा। भारत को आज भी चीन में ‘यिन तु’ (Yin-Tu) कहा जाता है। व्हेनसांग ने अपने ग्रन्थ ‘सी-यू-की’ (Hsi yu chi) में इसका वर्णन किया है।
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