मध्य प्रदेश के इतिहास का विभाजन

भारत के इतिहास कि तरह ही मध्य प्रदेश के इतिहास का विभाजन किया है भारतीय इतिहास के आधार पर म.प्र के इतिहास का विभाजन भी 03 भागों में किया है।
- प्रागैतिहासिक काल
- आध- ऐतिहासिक काल
- ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल( 25 लाख ई.पू. से 3 हजार ई.पु.)- ऐसा काल जिसकी जानकारी के कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलते है। बल्कि इस काल कि जानकारी हमें पुरातात्विक साक्ष्यों से मिलती है। उदा- पाषाण काल
आध-एतिहासिक काल(3 हजार ई.पू, से 6 सौ.ई.पू.)- इस काल कि जानकारी के लिए लिखित साक्ष्य प्राप्त हुए है परन्तु इस लिपि को पडा नही जा पाया या फिर ये लिपि किसी और समय पर लिखि गई है। अतः इस काल कि जानकारी मुख्यतः पुरातात्विक साक्ष्यो से मिलती है उदा. सिन्धु घाटी सभ्यता, ताम्र पाषाण काल एवं वैदिक सभ्यता। सिन्धु सभ्यता को इसलिए इस काल मे रखा है क्योकी इस सभ्यता मे लिपि को पडा नही जा सका है। और वैदिक सभ्यता को इस लिए इस काल मे रखा है क्योकि वेंदो कि रचना वैदिक काल के प्रारंभ में न होकर बाद में हुई थी।
ऐतिहासिक काल( 6 सौ ई.पु. से आज तक )- ऐसा काल जिसकी जानकारी हेतु लिखित एंव पुरातात्विक दोनो प्रकार के साक्ष्य उपल्बध है। उदा. महाजनपद काल के पश्चात् का काल।
नोट- तकनीकि दृष्टि से ताम्र पाषाण काल कांस्ययुगीन हड्प्पा सभ्यता से पुर्व का काल होना चाहिए क्योकि ताबे के उपयोग के पश्चात् ही मनुष्य ने काँसे का उपयोग किया था किन्तु भारत मे अधिकांश ताम्र पाषाण कालीन स्थल सिन्धु सभ्यता के पश्चात के काल के प्राप्त हुए हैं। यही कारण है कि अधिकांश इतिहासकरों ने ताम्र पाषाण काल को आध-एतिहासिक काल से सम्बधित माना है।
आगे के आर्टिकल में प्रागैतिहासिक काल के बारे मे बताया जायेगा जो आने बाले सरकारी एक्जाम में उपयोगी रहेगी। इसलिए आने बाले आर्टिकल सरकारी परिक्षाओ के लिए महत्वपुरण इसलिए आगे आर्टिकल पडना चालु रखे।
मध्य प्रदेश के प्रागैतिहासिक काल की जानकारी
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