मध्य प्रदेश का प्रागैतिहासिक काल
मध्य प्रदेश प्रागैतिहासिक काल की जानकारी पुर्णतः पुरातात्विक सामग्री से प्राप्त होती है इस काल मे मानव के सामाजिक व सांस्कृतिक विकास की जानकारी नही मिलती है प्रागैतिहासिक काल को पाषाण काल भी कहा जाता है, क्योकी इस काल की जानकारी मुख्यतः मनुष्यो द्वारा उपयोग मे लिये जाने बाले प्रस्तर उपकरणों से प्राप्त होती है।

पाषाण काल
पाषाण काल का नाम यूनानी भाषा के पैलियोलिथिक शब्द पर रखा गया है। अध्यन कि सुविधा के आधार पर इस काल को 03 भागो मे बाटा हुआ है
01 पुरापाषाण काल ( 25 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू. )
02 मध्यपाषाण काल (10 हजार ई.पू. से 07 हजार ई.पू.)
03 नवपाषाण काल (07 हजार ई.पू. से 03 हजार ई.पू.)
- पुरापाषाण काल ( 25 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू. )- इस काल का सम्बध प्रातिनूतन/ अत्यंतनूतन से है। प्रातिनूतन/ अत्यंतनूतन से लगभग 25 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू. वर्ष पूर्व तक माना जाता है। प्रातिनूतन युग से पूर्व अतिनूतन युग था तथा प्रातिनूतन युग के पश्चात् नूतन युग प्रांरभ हुआ, जो आज तक जारी है
इस युग कि विशेषताएं
01.निवास स्थान- इस समय का मानव खानाबदोश था इस समय मानव खाना तलाश ने के लिए जंगलो मे इधर उधर फिरता रहता था। पर रात्रि मे जगली जानवरो से बचने के लिए नदीयो के किनारे बनी गुफाओ व कंदराओ मे रहता था।
02 .जीविका के साधन – इस समय मानव अपना जीवनयापन करने के लिए प्रकृति पर ही निर्भर था मानव जंगलीणव बडे पशुओं का शिकार करके तथा कंद-मूल खाकर जीवित रहता था।
03 .कृषि एवं पशुपालन- इस समय मानव को कृषि व पशुपालन का ज्ञान नहीं था।
04 .अग्नि की खोज-पुरापाषाण काल के अंतिम चरण उच्च-पुरापाषाण काल मे मानव ने चकमक पत्थर को आपस मे रगडकर या टकराकर आग जलाना सीख लिय़ा था, किन्तु अभी वह आग के प्रयोग से पुर्णतः परिचित नहीं था नही आग को काबु कर पाता था।
- उपकरण या औजार- इस काल मे मानव शिकार करने हेतु शिकार करने पत्थर के औजारों का उपयोग करता था। इस काल मे औजार भद्दे , बेडोल एंव अनगढ थे, जिनमे मुख्य औजार हस्तकुठार, गण्डासा , खुरचनी, आदि थे। प्रस्तर उपकरणों में पेबल, चाँपर, चाँपिंग, क्लीवर स्क्रैपर, बोरर, प्वाईट, ब्युरिन
- कला- पुरापाषाण काल के अंतिम चरण उच्च- पुरापाषाण काल में मानव शैलचित्रों तथा प्रस्तर व अस्ति निर्मीत मुर्तियो का निर्माण करने लगा था उच्च- पुरापाषाण कालीन शैलचित्रों के साक्ष्य मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त हुए है। उसी प्रकार उच्च- पुरापाषाण कालीन मातृदेवी की प्रस्तर मुर्ति एवं अस्थि निर्मित मूर्ति के साक्ष्य क्रमशः सोन नदी घाटी एव बेलन नदी घाटी में स्थित लोहन्दानाला( प्रयागराज उ.प्र. ) से प्राप्त हुए है।
- वेशभूषा- इस समय मनुष्य ठंड से बचने के लिए जानवरो की खाल, पेडो के पत्ते व छाल का प्रयोग करते थे।
- आभूषण- पुरापाषाण काल के अंतिम चरण उच्च- पुरापाषाण काल में मानव अस्थि निर्मित आभूषण ( मनके एंव कर्णाभूषण) का भी उपयोग करने लगा था। उच्च- पुरापाषाण कालीन शुतुर्गमुर्ग के अण्ड कवच परप निर्मित मनकों के साक्ष्य मध्य प्रदेश स्थित खापरखेडा( जिला धार )एवं पटणे ( जिला जलगाँव, महाराष्ट्र ) से प्राप्त हुए है। उसी प्रकार उच्च- पुरापाषाण कालीन खण्डित कर्णाभूषण के साक्ष्य मध्य प्रदेश स्थित घोडामाडा ( जिली डिंडोरी ) से प्राप्त हुए है।
पुरा पाषाण काल को 03 भागो मे बाटा गया है।
01.पूर्व/निम्न पाषाण काल (25 लाख ई.पू. से 50 हजार ई.पू.)
- मध्य पाषाण काल (50 हजार ई.पू. से 40 हजार ई.पू.)
- उच्च पाषाण काल (40 हजार ई.पू. से 10 हजार ई.पू.)
01.पूर्व/निम्न पाषाण काल (25 लाख ई.पू. से 50 हजार ई.पू.) – इस समय का मानव खानाबदोश था। उसे कृषि एव पशुपालन का ज्ञान नहीं था। वह शिकारी ( आखेटक ) एवं खाध् संग्राहक था। बह केवल बडे पशुओ का हि शिकार कर सकता था।
इस काल मे मनुष्य शिकार करने हेतु क्वार्टजाइट/ स्फटिक ( चालसीडोनी) पत्थर के मुख्यतः क्रोड उपकरण का प्रयोग करता था इस काल मे मुख्य उपकरण पेबल, चाँपर, चाँपिंग, क्लीवर स्क्रैपर, बोरर, प्वाईट, ब्युरिन पेबल, चाँपर, चाँपिंग, क्लीवर स्क्रैपर, बोरर, प्वाईट, ब्युरिन आदि।
Leave a Reply